जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के अवंतिपुरा में हुए चरमपंथी हमले में सीआरपीएफ के 42 जवान शहीद हो गए है. इन्हीं शहीदों में जम्मू के राजौरी के थान्नामंदी तहसील के दोदासन बाला गांव का एक बेटा भी शामिल है. इस गांव ने अपने बेटे नसीर अहमद को खो दिया है. नसीर सीआरपीएफ की 76वीं वाहिनी में थे. जम्मू-श्री नगर हाईवे पर चरमपंथियों ने जिस सीआरपीएफ की बस को निशाना बनाया था नसीर उसके कमांडर के तौर पर तैनात थे. घटना वाले दिन से एक दिन पहले ही नसीर ने अपना जन्मदिन मनाया था. 13 फ़रवरी को ही नसीर ने अपना 46वां जन्मदिन मनाया था.
जिस दिन यह घटना हुई उस दिन नसीर की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्हें काफी तेज बुखार था और उनके बड़े भाई ने उन्हें छुट्टी लेने के लिए भी कहा था जिससे की वह थोड़ा आराम करें सके और उनकी तबियत में सुधार आ सके. लेकिन नसीर ने अपनी तबीयत से ज्यादा अपने फर्ज को निभाना ठीक समझा.
नसीर ने बुखार होने के बाद भी कश्मीर घाटी जाने के लिए हां बोल दिया लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा न था कि यह सफर उनकी जिंदगी का आखिरी सफर साबित होगा. उनके शहीद होने की खबर मिलते ही उनके घर गांव वालों का आना जाना लगा हुआ है सभी लोग उनके परिवार से संवेदना जता रहे हैं.
नसीर पिछले 22 साल से सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे थे और उनका पूरा परिवार जम्मू में ही रहता था. उनके बच्चे ही यही के एक स्कूल में पढाई करते है. शुक्रवार को उनकी शहादत के बाद देर शाम तक उनकी पत्नी शाजिया कौसर और बच्चे गांव नहीं पहुंचे थे. उनकी बेटी फलक और बेटे काशिफ़ इस बात से बेखबर थे कि अब उनके पिता हमेशा के लिए उनसे दूर चले गए है.
शहीद हुए नसीर अहमद के माता-पिता का इंतकाल बचपन में ही हो गया था इसके बाद उनके बड़े भाई सिराजुद्दीन जो खुद भी पुलिसकर्मी है ने ही उन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया था. सिराजुद्दीन ने कहा कि वह अपनी नौकरी करते हुए देश के नाम शहीद हो गया उसने अपना फर्ज निभा दिया है.
उन्होंने बताया कि मैं कभी नहीं चाहता था कि वह भी वर्दी वाली नौकरी करें लेकिन नसीर के अंदर शुरू से ही देशभक्ति की भावना थी इसलिए उसने मेरी एक नहीं सुनी और सेना में भर्ती हो गया. सिराजुद्दीन ने कहा कि मेरा भाई देश के लिए कुर्बान हो गया. मेरी बस सरकार से यही अपील है कि वह ठोस कदम उठाए ताकि फिर किसी के घर इस आग में न जले.
उन्होंने कहा कि मैं अब अकेला पड़ गया हूँ उसके छोटे छोटे दो बच्चे है जिन्हें अभी पढाना है पालना है कैसे होगा जिंदगी का इतना लंबा सफ़र. उन्होंने कहा कि मेरी सरकार से अपील है कि सरकर उनके बच्चों को मदद उपलब्ध कराए क्योंकि वो अभी बहुत छोटे हैं.