इस्लाम धर्म में एक “मुफ्ती” का ओहदा बहुत ख़ास मायने रखता है, जब हम किसी मुफ़्ती का नाम लेते हैं तो हमारे ज़ेहन में एक बेहद नेक तस्वीर उबर कर सामने आती है. और आए भी क्यों न इस्लाम धर्म में मुसलामानों के लिए एक मुफ़्ती इज्ज़त के काबिल और आम मौलाना से कहीं अधिक होता है.
अब में मुद्दे की बात पर आता हूँ, हो सकता है कि ये बात कुछ लोगों को बेहद नागवार लगे, कुछ लोग शायद इसको सही भी कहें. मैंने अपनी ज़िन्दगी में तमाम ओलेमाओं और हाफिजों से मुलाकातें की कई शहर क़ाज़ी और मौलाना, मुफ़्ती जैसी हस्तियों से भी राब्ता हुआ हूँ, मगर आज तक इनमें से किसी की अहलिया (बीवी) का चेहरा नहीं देख सका, यहाँ तक की शादियों में या मदरसों में होने वाले जलसों में.
सना खान और मुफ़्ती अनस सईद की वायरल तस्वीरें
एक मुफ़्ती इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों के लिए धार्मिक लोगों का “रोल माॅडल” होता है. जब वे लोग कहीं असमंजस की स्तिथि में होते हैं तो उनसे ही धर्म के मामले में सलाह लेते हैं. इतना ही नहीं उनकी बताई हुई धार्मिक बातों या सलाह पर भी यकीन करके उस बात पर मुसलमान अमल करते हैं.
एक इंसान जो मुफ्ती है, उसकी इस ओहदे पर होने के बाद से कुछ धार्मिक ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, जिनका उनको ज़िन्दगी भर निर्वहन भी करना पड़ता है. अगर हमारा रहनुमा, हमारा रोल माॅडल खुद ही पटरी से नीचे जा रहा है तो तो वो दूसरों को लाइन पर कैसे ला सकेगा?.
बॉलीवुड की पूर्व अभिनेत्री ‘सना खान’ (Sana Khan) ने मुफ़्ती अनस सईद से निकाह किया, इसके बाद से जिस तरह एक मुफ़्ती के चोले में शादी के बाद से दोनों की तस्वीरे और वीडियो वायरल हो रहे हैं वो शर्मनाक हैं.
एक मुफ़्ती का ओहदा (पद) दुनियाभर में इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए एक “रोल माॅडल” होता है, क्या इस बात को लेकर कोई उलेमा या इस्लाम के जानकार कुछ कहेंगे?
हो सकता है के इस सवाल का जवाब देते वक़्त मुफ़्ती अनस किसी भी हवाले से कुछ भी तर्क देकर कुछ भी सिद्ध कर सकते हैं, हालाँकी इस बात में कोई दो राय नहीं कि उनका वैवाहिक जीवन व्यक्तिगत है, जिसको जीने के लिए वे स्वतंत्र हैं, पर उनकी ऐसी तस्वीरें इस तरह से सार्वजनिक होना मुझे हैरान करती हैं कि “सना खान” बदलीं या “मुफ्ती” साहब?.
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क्या ये एक मुफ़्ती के ओहदे को बेईज्ज़त करने जैसा नहीं है?
हालाँकि यदि वह दाढ़ी रखे ना होते और मुफ्ती न होते तो मुझे इन तस्वीरों से ज़रा भी ऐतराज़ ना होता. बता दूं के दाढ़ी उग आने का मतलब चेहरे पर उग आना भी नहीं है.
आपका दाढ़ी रखना इस्लाम में एक प्रोटोकाल की तरह से है, जिसका एहतेराम मुफ्ती साहब को करना चाहिए। और वह मुफ्ती होकर भी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो मुझे उनकी तालीम और मुफ्ती होने पर अफसोस होता है दोस्तों.
इस्लामिक दाढ़ी रखे लोग और मुफ्ती के चरित्र से ही लोग इस्लाम को समझते हैं। मुफ्ती साहब और सना खान को सलाह है कि बड़े बड़े ओलेमा से राब्ता कायम करने की जगह वह “ज़ायरा वसीम” से कुछ राब्ता कायम करें, जो निःसंदेह सना खान से बड़ी फिल्मी अदाकार थी.