नई दिल्ली: अयोध्या पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 33 साल तक इस मामले से जुड़े रहे और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने एक बार फिर फैसले वाले दिन का बयान को ही दोहराते हुए कहा, में पूरा फैसला पढ़ने के बाद असंतुष्टि अभी भी कायम है. जो राय मेरी उस दिन थी वही राय आज भी है कि हमें रिव्यू पिटीशन फाइल करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को उसमें जो गड़बड़ियां हैं वह बताना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या मामले में सुनाये गए फैसले पर मुस्लि’म पक्ष सन्तुष्ट नही है, इसी लिए पुनर्विचार याचिका दायर करने को लेकर हर जगहों पर सलाह मशिवरा हो रहा है।
बता दें राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवा’दित जमीन का मालिका’ना हक़ हिन्दू पक्छ को दे दिया है. और वही सरकार को 6 महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण की रूप रेखा तय करने को भी कहा गया है. जबकि सुन्नी वफ्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या में ही कही दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है।
मीडिया से बात चित के दौरान केस से जुड़ा इतिहास बताते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा, 1961 में जब यह दावा दायर हुआ था तो एक रिप्रजेंटेटिव सूट की तरह दायर हुआ था. कोर्ट से यह परमिशन ली गई थी कि इसे इंटायर मुस्लि’म कम्यूनिटी की तरफ से इंटायर हिंदू कम्यूनिटी के खिला’फ दावा माना जाए, कोर्ट ने यह परमिशन प्रदान कर दी थी।
Zafaryab Jilani, Sunni Waqf Board Lawyer: We respect the judgement but we are not satisfied, we will decide further course of action. #AyodhyaJudgment pic.twitter.com/5TCpC0QXl6
— ANI (@ANI) November 9, 2019
वही उस समय सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ 9 दूसरे मुसलमा’न फरीक बने थे और उन्होंने यह मुकदमा लड़ा है. सुन्नी वक्फ बोर्ड 1961 से लेकर 86 तक अपने हिसाब से लड़ा. 86 के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने न तो इसमें इंटरेस्ट दिखाया और न पैरवी की. 86 से 92 तक हम लोग इसे करते रहे अपनी एक्शन कमेटी की तरफ से. 93 से ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे टेकअप किया और तभी से लेकर आज तक पर्सनल लॉ बोर्ड इसके खर्चे उठा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू-पिटीशन पर अपना पक्ष साफ करते हुए जिलानी ने कहा की अभी फिलहाल जो सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का बयान आया है और उनकी मीटिंग 26 नवंबर को होने वाली है. अगर वे यह तय भी कर लेते हैं कि वे रिव्यू-पिटीशन नहीं डालेंगे तो भी चूंकि यह इंटायर कम्यूनिटी का मामला है तो बाकी जो फरीक हैं उनके लिए ओपन है. जिन्होंने पहली अपील डाली थी।
Shia Cleric Maulana Kalbe Jawad: We humbly accept SC verdict, I am thankful to god that Muslims by and large have accepted this verdict and the dispute has ended now. Though its their(Muslim Personal law board) right to file review petition I think matter should just end now pic.twitter.com/pIvBSQGrxh
— ANI (@ANI) November 9, 2019
वही सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दोहराते हुए जिलानी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है और हाई कोर्ट ने भी कहा है कि 22/23 दिसंबर की रात जो मूर्तियां रखी गईं वो गलत थीं और गै’रका’नू’नी थीं. हाई कोर्ट ने उसको बुनियाद बनाकर सूट नंबर 5 के प्लैंटिफ नंबर 1 रामलला को डिइटी नहीं माना है. सुप्रीम कोर्ट ने उसी डिइटी को प्लेंटिफ नंबर 1 को यह तो माना कि 1949 में यह मूर्तियां ग’लत रखी गईं लेकिन उसके बाद भी प्लेंटिफ नंबर 1 को सूट डिक्री कर वह जमीन दे दी जो मस्जिद की जमीन है।
जफरयाब जिलानी कोर्ट के फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा की सुप्रीम कोर्ट से हमारा पहला ऐतराज यह है कि अगर वह डिइटी जो हो ही नहीं सकती है हिंदू लॉ के तहत, यह पूरी तरह लीगल सवाल है जिसको हम सुप्रीम कोर्ट के सामने ले जाना चाहते हैं।
वही जिलानी ने अपना दूसरा तर्क पेश करते हुए उन्होंने कहा, की सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है और हाई कोर्ट ने भी माना था कि मु’सलमा’नों के एविडेंस कम से कम 1857 के बाद से 1949 तक उस मस्जिद को यूज करने की और उस मस्जिद में नमाज पढ़ने की है।
तकरीबन इसको 90 साल होते हैं. तो अगर 90 साल तक हमने किसी मस्जिद में नमाज पढ़ी है तो उस मस्जिद की जमीन हमारी मस्जिद को न देकर मंदिर को देने का क्या मतलब है यह हमारी समझ से बाहर है. हम सुप्रीम कोर्ट में इस पर भी जाना चाहते हैं।