18वीं सदी के मैसूर का टाइगर कहे जाने वाले शेरे मैसूर, हज़रत टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर 1750 को हिंदुस्तान के कर्नाटक के बेंगलुरू राज्य के पास कोलार जिले के देवनहल्ली कसबे में हुआ था. टीपू सुल्तान का पूरा नाम ‘सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था. टीपू सुल्तान के के पिता का नाम हैदर अली था और इनकी माँ का नाम फातिमा फ़क़रुन्नि’सा था.
टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली, मैसूर साम्रा’ज्य के सैनापति हुआ करते थे. बाद में जाकर वह अपनी ताकत के दम पर 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने. टीपू को मैसूर टाइगर के रूप में जाना जाता है, क्योंकि 15 साल ई उम्र में ही उनमे गुरिल्ला तकनीक से यु’ध्ध लड़ने की काबलियत थी.
उन्होंने अपने शासनकाल के चलते, अपने साम्राज्य के बचाव के लिए कई तरह के नए-नए प्रयोग भी किए थे, जिसके चलते उनको एक अलग उपाधि से नवाज़ा गया था.
आपको बता दें टीपू सुल्तान, हैदर अली के सबसे बड़े बेटे थे. टीपू ने सन 1782 में अपने पिता की मृ’त्यु हो जाने के बाद उनका सिंहास’न संभाला था.
इन्होंने एक शासक के रूप में अपने शासनकाल के दौरान एक के बाद एक कई, नई नीतियों को लागू किया था. अंग्रेजों के खिला’फ उन्होंने अपने इस संघ’र्ष में अपने पिता की नीतियों को जारी रखा था. उन्होंने अंग्रेजों के खिला’फ अकेले ही, कई लड़ा’ईयां भी ल’ड़ी और अपने साम्राज्य की र’क्षा भी की.
शेरे मैसूर, टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई बड़े बदलाव किये, उन्होंने उस समय कई पुरानी राजस्व नीतियों को ख़तम करके नयी नीतियों को लागू किया था. डी में इन्हीं के कारन उन्हें काफी फायदा भी हुआ था.
टीपू सुलतान ने इसके साथ ही अपनी सेना की यु’द्ध क्षमता में बेहतरीन इजाफा भी किया था. आपको बता दें कि टीपू सुल्तान को रॉके’ट (मिसाईल) का आविष्का’रक माना जाता है. ऐसे वीर टीपू सुल्तान की आज शहाद’त का दिन है, टीपू सुलतान 4 मई 1799 को इस दुनिया से अलविदा हुए थे.
मैसूर का शेर कहे जाने वाले टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को रॉके’ट का बखू’बी इस्तेमाल किया था। ये रॉके’टमैन रॉके’ट चलाने के एक्सपर्ट थे, यु’द्ध के दौरान ये ऐसे निशाने लगाते थे कि वि’रोधि’यों को भारी नुकसा’न होता था। टीपू सुल्तान के शासनकाल में ही मैसूर में पहली लोहे के केस वाली मि’साइ’ल रॉ’केट को विकसित किया था.
मिसाइल रॉकेट का वैसे तो टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली के आदेश पर इसका निर्माण किया गया। लेकिन टीपू सुल्ता’न ने इस रॉकेट में समय के साथ कई बदलाव करके इसकी मारक क्षमता में जबरदस्त इजाफा किया। आपको बता दें टीपू सुल्तान के समय में मिसा’इल रॉकेट का सबसे ज्यादा प्रयोग किया किया, जो अंग्रे’जों की डर की एक वजह बना था.
टीपू सुल्तान ने इसी मि’साइल रॉके’ट के जरिए कई लड़ा’इयों में अंग्रेजों के छ’क्के छुड़ा दिए थे। टीपू सुल्ता’न ने 18वीं शताब्दी में मि’साइल रॉके’ट का उचित ढंग से उपयोग किया था। वो अपनी सेना में मि’साइल रॉके’ट की उपयोगिता को समझते थे। इसी के चलते उन्होंने सेना में रॉ’केट के विकास और रखरखाव को लेकर एक अलग यूनिट स्थापित की थी.
अगर इतिहासकारों की माने तो ये भी कहा जाता है कि जब टीपू सुल्तान की मौ’त हो गई थी तो उनके द्वारा निर्मित की गई बहुत सी मि’साइलों को अंग्रेजों ने इंग्लैंड भेज दिया था। रॉयल वूलविच आर्सेनल में इन रॉकेट में अनुसंधान करके नए और उन्नत किस्म के रॉ’केट का निर्माण किया.